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Author: Manoj Verma
मेरा नाम मनोज वर्मा है, और मैं SampurnChalisa.in का Founder & Author हूँ। मुझे धार्मिक ग्रंथों और चालीसाओं का गहन अध्ययन और लेखन का शौक है। इस वेबसाइट के माध्यम से मेरा उद्देश्य भक्तों को सरल और सटीक जानकारी प्रदान करना है ताकि वे अपने आध्यात्मिक जीवन को और समृद्ध बना सकें।
॥ Ganpati Aarti ॥सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची।नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची। सर्वांगी सुन्दर उटि शेंदुराची।कण्ठी झळके माळ मुक्ताफळांची।। जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।दर्शनमात्रे मनकामना पुरती।। रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा।चन्दनाची उटि कुंकुमकेशरा। हिरे जड़ित मुकुट शोभतो बरा।रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया।। जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।दर्शनमात्रे मनकामना पुरती।। लम्बोदर पीताम्बर फणिवर बन्धना।सरळ सोण्ड वक्रतुण्ड त्रिनयना। दास रामाचा वाट पाहे सदना।संकटी पावावे निर्वाणीरक्षावे सुरवरवन्दना।। जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।दर्शनमात्रे मनकामना पुरती।।
श्री कालभैरव अष्टकम् ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजंव्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरमनारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरंकाशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ १॥ हिंदी अर्थ – जिनके पवित्र चरर्णों की सेवा भगवान देवराज इंद्र सदा करते हैं, जिन्होंने शिरोभूषण के रुप में चंद्र और सांप (सर्प) को धारण किया करते है, जो दिगंबर जी के वेश में हैं और नारद भगवान आदि योगिगों का समूह जिनकी पूजा, वंदना करते हैं, उन काशी के नाथ कालभैरव जी को मैं सदा भजता हूं। भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परंनीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम ।कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरंकाशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥२॥ हिंदी अर्थ – जो सूर्य की तरह प्रकाश देने वाले हैं, परमेश्वर भवसागर से जो तारने वाले हैं, जिनका कंठ नीला है और सदा…
हनुमान बाहुक श्रीगणेशाय नमःश्रीजानकीवल्लभो विजयतेश्रीमद्-गोस्वामी-तुलसीदास-कृत ॥ छप्पय ॥सिंधु-तरन, सिय-सोच हरन, रबि-बालबरन-तनु ।भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ॥गहन-दहन-निरदहन-लंक निःसंक, बंक-भुव ।जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ॥कह तुलसिदास सेवत सुलभ, सेवक हित सन्तत निकट।गुनगनत, नमत, सुमिरत, जपत, समन सकल-संकट-बिकट ॥१॥ स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन तेज घन।उर बिसाल, भुज दण्ड चण्ड नख बज्र बज्रतन ॥पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन।कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल-बल-भानन॥कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट।संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट॥२॥ ॥ झूलना ॥पञ्चमुख-छमुख-भृगुमुख्य भट-असुर-सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो।बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो॥जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो।दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है पवन को पूत…
॥ दोहा ॥श्री गणपति गुरुपद कमल,प्रेम सहित सिरनाय।नवग्रह चालीसा कहत,शारद होत सहाय॥ जय जय रवि शशि सोम बुध,जय गुरु भृगु शनि राज।जयति राहु अरु केतु ग्रह,करहु अनुग्रह आज॥ ॥ चौपाई ॥श्री सूर्य स्तुतिप्रथमहि रवि कहँ नावौं माथा।करहुं कृपा जनि जानि अनाथा॥ हे आदित्य दिवाकर भानू।मैं मति मन्द महा अज्ञानू॥ अब निज जन कहँ हरहु कलेषा।दिनकर द्वादश रूप दिनेशा॥ नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर।अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर॥ श्री चन्द्र स्तुतिशशि मयंक रजनीपति स्वामी।चन्द्र कलानिधि नमो नमामि॥ राकापति हिमांशु राकेशा।प्रणवत जन तन हरहुं कलेशा॥ सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर।शीत रश्मि औषधि निशाकर॥ तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशा।शरण शरण जन हरहुं कलेशा॥ श्री…
॥ दोहा ॥कनक बदन कुण्डल मकर,मुक्ता माला अङ्ग।पद्मासन स्थित ध्याइए,शंख चक्र के सङ्ग॥ ॥ चौपाई ॥जय सविता जय जयति दिवाकर!।सहस्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!।सविता हंस! सुनूर विभाकर॥ विवस्वान! आदित्य! विकर्तन।मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥ अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते।वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥ सहस्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि।मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥ अरुण सदृश सारथी मनोहर।हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥ मंडल की महिमा अति न्यारी।तेज रूप केरी बलिहारी॥ उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते।देखि पुरन्दर लज्जित होते॥ मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर।सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥ पूषा रवि आदित्य नाम लै।हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥ द्वादस नाम प्रेम सों गावैं।मस्तक बारह बार नवावैं॥ चार पदारथ जन सो पावै।दुःख…
|| दुर्गा चालीसा ||नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥ शशि ललाट मुख महाविशाला ।नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥ रूप मातु को अधिक सुहावे ।दरश करत जन अति सुख पावे ॥ तुम संसार शक्ति लै कीना ।पालन हेतु अन्न धन दीना ॥ अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥ प्रलयकाल सब नाशन हारी ।तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥ शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ रूप सरस्वती को तुम धारा ।दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥ धरयो रूप नरसिंह को…
|| दोहा ||बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम।अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥ जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥ ॥ चौपाई ॥जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥ जय नट-नागर नाग नथैया।कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।आओ दीनन कष्ट निवारो॥ वंशी मधुर अधर धरी तेरी।होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥आओ हरि पुनि माखन चाखो।आज लाज भारत की राखो॥ गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥रंजित राजिव नयन विशाला।मोर मुकुट वैजयंती माला॥ कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।कटि किंकणी काछन काछे॥नील जलज सुन्दर तनु सोहे।छवि…
॥ दोहा ॥श्री गुरु चरण चितलाय,के धरें ध्यान हनुमान।बालाजी चालीसा लिखे,दास स्नेही कल्याण॥ विश्व विदित वर दानी,संकट हरण हनुमान।मैंहदीपुर में प्रगट भये,बालाजी भगवान॥ ॥ चौपाई ॥जय हनुमान बालाजी देवा।प्रगट भये यहां तीनों देवा॥ प्रेतराज भैरव बलवाना।कोतवाल कप्तानी हनुमाना॥ मैंहदीपुर अवतार लिया है।भक्तों का उध्दार किया है॥ बालरूप प्रगटे हैं यहां पर।संकट वाले आते जहाँ पर॥ डाकनि शाकनि अरु जिन्दनीं।मशान चुड़ैल भूत भूतनीं॥ जाके भय ते सब भाग जाते।स्याने भोपे यहाँ घबराते॥ चौकी बन्धन सब कट जाते।दूत मिले आनन्द मनाते॥ सच्चा है दरबार तिहारा।शरण पड़े सुख पावे भारा॥ रूप तेज बल अतुलित धामा।सन्मुख जिनके सिय रामा॥ कनक मुकुट मणि तेज प्रकाशा।सबकी…
॥ दोहा ॥श्री गुरु चरण ध्यान धर, सुमिरि सच्चिदानन्द।श्याम चालीसा भजत हूँ, रच चैपाई छन्द।। ॥ चौपाई ॥श्याम श्याम भजि बारम्बारा।सहज ही हो भवसागर पारा॥ इन सम देव न दूजा कोई।दीन दयालु न दाता होई॥ भीमसुपुत्र अहिलवती जाया।कहीं भीम का पौत्र कहाया॥ यह सब कथा सही कल्पान्तर।तनिक न मानों इसमें अन्तर॥ बर्बरीक विष्णु अवतारा।भक्तन हेतु मनुज तनु धारा॥ वसुदेव देवकी प्यारे।यशुमति मैया नन्द दुलारे॥ मधुसूदन गोपाल मुरारी।बृजकिशोर गोवर्धन धारी॥ सियाराम श्री हरि गोविन्दा।दीनपाल श्री बाल मुकुन्दा॥ दामोदर रणछोड़ बिहारी।नाथ द्वारिकाधीश खरारी॥ नरहरि रुप प्रहलाद प्यारा।खम्भ फारि हिरनाकुश मारा॥ राधा वल्लभ रुक्मिणी कंता।गोपी वल्लभ कंस हनंता॥ मनमोहन चित्तचोर कहाये।माखन चोरि चोरि…
॥ दोहा ॥श्री भैरव सङ्कट हरन,मंगल करन कृपालु।करहु दया जि दास पे,निशिदिन दीनदयालु॥ ॥ चौपाई ॥जय डमरूधर नयन विशाला।श्याम वर्ण, वपु महा कराला॥ जय त्रिशूलधर जय डमरूधर।काशी कोतवाल, संकटहर॥ जय गिरिजासुत परमकृपाला।संकटहरण हरहु भ्रमजाला॥ जयति बटुक भैरव भयहारी।जयति काल भैरव बलधारी॥ अष्टरूप तुम्हरे सब गायें।सकल एक ते एक सिवाये॥ शिवस्वरूप शिव के अनुगामी।गणाधीश तुम सबके स्वामी॥ जटाजूट पर मुकुट सुहावै।भालचन्द्र अति शोभा पावै॥ कटि करधनी घुँघरू बाजै।दर्शन करत सकल भय भाजै॥ कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर।मोरपंख को चंवर मनोहर॥ खप्पर खड्ग लिये बलवाना।रूप चतुर्भुज नाथ बखाना॥ वाहन श्वान सदा सुखरासी।तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी॥ जय जय जय भैरव भय भंजन।जय…