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Author: Manoj Verma
मेरा नाम मनोज वर्मा है, और मैं SampurnChalisa.in का Founder & Author हूँ। मुझे धार्मिक ग्रंथों और चालीसाओं का गहन अध्ययन और लेखन का शौक है। इस वेबसाइट के माध्यम से मेरा उद्देश्य भक्तों को सरल और सटीक जानकारी प्रदान करना है ताकि वे अपने आध्यात्मिक जीवन को और समृद्ध बना सकें।
॥ दोहा ॥ श्री गुरु चरण सरोज छवि,निज मन मन्दिर धारि।सुमरि गजानन शारदा,गहि आशिष त्रिपुरारि॥बुद्धिहीन जन जानिये,अवगुणों का भण्डार।बरणों परशुराम सुयश,निज मति के अनुसार॥ ॥ चौपाई ॥ जय प्रभु परशुराम सुख सागर।जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर॥भृगुकुल मुकुट विकट रणधीरा।क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा॥जमदग्नी सुत रेणुका जाया।तेज प्रताप सकल जग छाया॥मास बैसाख सित पच्छ उदारा।तृतीया पुनर्वसु मनुहारा॥ प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा।तिथि प्रदोष व्यापि सुखधामा॥तब ऋषि कुटीर रूदन शिशु कीन्हा।रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा॥निज घर उच्च ग्रह छः ठाढ़े।मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े॥तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा।जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा॥ धरा राम शिशु पावन नामा।नाम जपत जग लह विश्रामा॥भाल त्रिपुण्ड…
॥ दोहा ॥ श्रीराधे वृषभानुजा , भक्तानी प्राणाधार |वृन्दाविपिन विहारिन्नी , प्रन्नावोम बारम्बार || जैसो तैसो रवारोऊ , कृष्ण -प्रिय सुखधाम |चरण शरण निज दीजिये , सुन्दर सुखद ललाम || ।। चौपाई ।। जय वृषभान कुंवारी श्री श्यामा | कीरति नंदिनी शोभा धामा ||नित्य विहारिणी श्याम अधर | अमित बोध मंगल दातार || रास विहारिणी रस विस्तारिन | सहचरी सुभाग यूथ मन भावनी |नित्य किशोरी राधा गोरी | श्याम प्रन्नाधन अति जिया भोरी || करुना सागरी हिय उमंगिनी | ललितादिक सखियाँ की संगनी ||दिनकर कन्या कूल विहारिणी | कृष्ण प्रण प्रिय हिय हुल्सवानी || नित्य श्याम तुम्हारो गुण गावें |…
॥ दोहा ॥हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम ।प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ॥ ॥ चालीसा ॥भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।गायत्री नित कलिमल दहनी ॥१॥ अक्षर चौबिस परम पुनीता ।इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥ शाश्वत सतोगुणी सतरुपा ।सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥ हंसारुढ़ सितम्बर धारी ।स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥४॥ पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥ ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥ कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।निराकार की अदभुत माया ॥ तुम्हरी…
॥ दोहा ॥ गरुड़ वाहिनी वैष्णवी त्रिकुटा पर्वत धामकाली, लक्ष्मी, सरस्वती, शक्ति तुम्हें प्रणाम ॥ चौपाई ॥ नमो: नमो: वैष्णो वरदानी, कलि काल मे शुभ कल्याणी।मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी, पिंडी रूप में हो अवतारी॥ देवी देवता अंश दियो है, रत्नाकर घर जन्म लियो है।करी तपस्या राम को पाऊँ, त्रेता की शक्ति कहलाऊँ॥ कहा राम मणि पर्वत जाओ, कलियुग की देवी कहलाओ।विष्णु रूप से कल्कि बनकर, लूंगा शक्ति रूप बदलकर॥ तब तक त्रिकुटा घाटी जाओ, गुफा अंधेरी जाकर पाओ।काली-लक्ष्मी-सरस्वती माँ, करेंगी पोषण पार्वती माँ॥ ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे, हनुमत, भैरों प्रहरी प्यारे।रिद्धि, सिद्धि चंवर डुलावें, कलियुग-वासी पूजत आवें॥ पान सुपारी…
॥ दोहा॥ जैसे अटल हिमालय औरजैसे अडिग सुमेर । ऐसे ही स्वर्ग द्वार पै,अविचल खड़े कुबेर ॥ विघ्न हरण मंगल करण, सुनो शरणागत की टेर । भक्त हेतु वितरण करो,धन माया के ढ़ेर ॥ ॥ चौपाई ॥ जै जै जै श्री कुबेर भण्डारी ।धन माया के तुम अधिकारी ॥ तप तेज पुंज निर्भय भय हारी ।पवन वेग सम सम तनु बलधारी ॥ स्वर्ग द्वार की करें पहरे दारी ।सेवक इंद्र देव के आज्ञाकारी ॥ यक्ष यक्षणी की है सेना भारी ।सेनापति बने युद्ध में धनुधारी ॥ महा योद्धा बन शस्त्र धारैं ।युद्ध करैं शत्रु को मारैं ॥ सदा विजयी कभी…
॥ दोहा ॥ जय ब्रह्मा जय स्वयम्भू, चतुरानन सुखमूल।करहु कृपा निज दास पै, रहहु सदा अनुकूल। तुम सृजक ब्रह्माण्ड के, अज विधि घाता नाम।विश्वविधाता कीजिये, जन पै कृपा ललाम। ॥ चौपाई ॥ जय जय कमलासान जगमूला, रहहू सदा जनपै अनुकूला।रुप चतुर्भुज परम सुहावन, तुम्हें अहैं चतुर्दिक आनन। रक्तवर्ण तव सुभग शरीरा, मस्तक जटाजुट गंभीरा।ताके ऊपर मुकुट विराजै, दाढ़ी श्वेत महाछवि छाजै। श्वेतवस्त्र धारे तुम सुन्दर, है यज्ञोपवीत अति मनहर।कानन कुण्डल सुभग विराजहिं, गल मोतिन की माला राजहिं। चारिहु वेद तुम्हीं प्रगटाये, दिव्य ज्ञान त्रिभुवनहिं सिखाये।ब्रह्मलोक शुभ धाम तुम्हारा, अखिल भुवन महँ यश विस्तारा। अर्द्धागिनि तव है सावित्री, अपर नाम हिये…
॥ दोहा॥ विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय । ॥ चौपाई ॥ नित्य आनंद करिणी माता, वर अरु अभय भाव प्रख्याता ।जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी, अखिल पाप हर भव-भय-हरनी । श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि, संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ।काशी पुराधीश्वरी माता, माहेश्वरी सकल जग त्राता । वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी, विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी ।पतिदेवता सुतीत शिरोमणि, पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि । पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा, योग अग्नि तब बदन जरावा ।देह तजत शिव चरण सनेहू, राखेहु जात हिमगिरि गेहू । प्रकटी गिरिजा नाम धरायो,…
भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से आप सभी भलिभांति परिचित है और उनके बाल स्वरूप की ढ़ेर सारी लीलाए है, जिसमें उन्होने कई सारे अवगुणों को नाश करते है। जो श्री कृष्ण के बाल स्वरूप श्री गोपाल लड्डू की पूजा-अर्चना करते है उनके सभी दुःख-कष्ट दूर हो जाते है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु जी के ही अवतार माने जाते है. जब धरती पर कंस का अत्याचार बढ़ता जा रहा था तो उसका अंत करने हेतु भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में धरती पर जन्म लिया था। जो कोई भी भगवान कृष्ण की अर्चना…
॥ दोहा ॥श्री गुरु पद पंकज नमन,दुषित भाव सुधार,राणी सती सू विमल यश,बरणौ मति अनुसार,काम क्रोध मद लोभ मै,भरम रह्यो संसार,शरण गहि करूणामई,सुख सम्पति संसार॥ ॥ चौपाई ॥नमो नमो श्री सती भवानी।जग विख्यात सभी मन मानी ॥ नमो नमो संकट कू हरनी।मनवांछित पूरण सब करनी ॥ नमो नमो जय जय जगदंबा।भक्तन काज न होय विलंबा ॥ नमो नमो जय जय जगतारिणी।सेवक जन के काज सुधारिणी ॥4 दिव्य रूप सिर चूनर सोहे ।जगमगात कुन्डल मन मोहे ॥ मांग सिंदूर सुकाजर टीकी ।गजमुक्ता नथ सुंदर नीकी ॥ गल वैजंती माल विराजे ।सोलहूं साज बदन पे साजे ॥ धन्य भाग गुरसामलजी को ।महम…
नवधा भक्ति का वर्णन रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में है। जिसमें भगवान श्रीराम माता शबरी से मिलते है और उन्हे भक्ति के नौ स्वरुपों की जानकारी प्रदान करते है। इस पोस्ट में उन नौ स्वरुपों के बारे में जानेगें। नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥ गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥ मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥ सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक…