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Author: Manoj Verma
मेरा नाम मनोज वर्मा है, और मैं SampurnChalisa.in का Founder & Author हूँ। मुझे धार्मिक ग्रंथों और चालीसाओं का गहन अध्ययन और लेखन का शौक है। इस वेबसाइट के माध्यम से मेरा उद्देश्य भक्तों को सरल और सटीक जानकारी प्रदान करना है ताकि वे अपने आध्यात्मिक जीवन को और समृद्ध बना सकें।
क्या आप शिक्षा और ज्ञान में उत्कृष्टता प्राप्त करना चाहते हैं? भारत में पूजा-अर्चना का गहरा महत्व है, और माँ सरस्वती, ज्ञान और विद्या की देवी, को प्रसन्न करना सफलता का महत्वपूर्ण मार्ग माना जाता है। यदि आप भी अपनी पढ़ाई या करियर में असाधारण मुकाम हासिल करना चाहते हैं, तो माँ सरस्वती की पूजा और नित्य सरस्वती चालीसा का पाठ आपके लिए बेहद लाभकारी हो सकता है। आइए जानें सरस्वती चालीसा पाठ के अद्भुत लाभ और इसे करने की सही विधि। ॥दोहा॥ जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥पूर्ण जगत में व्याप्त तव,…
॥ दोहा ॥ दाहिने भीमा ब्रामरी अपनी छवि दिखाए।बाईं ओर सतची नेत्रों को चैन दीवलए।भूर देव महारानी के सेवक पहरेदार।मां शकुंभारी देवी की जाग मई जे जे कार।। ॥ चौपाई ॥ जे जे श्री शकुंभारी माता। हर कोई तुमको सिष नवता।।गणपति सदा पास मई रहते। विघन ओर बढ़ा हर लेते।।हनुमान पास बलसाली। अगया टुंरी कभी ना ताली।।मुनि वियास ने कही कहानी। देवी भागवत कथा बखनी।। छवि आपकी बड़ी निराली। बढ़ा अपने पर ले डाली।।अखियो मई आ जाता पानी। एसी किरपा करी भवानी।। रुरू डेतिए ने धीयां लगाया। वार मई सुंदर पुत्रा था पाया।।दुर्गम नाम पड़ा था उसका। अच्छा कर्म नहीं…
॥ दोहा ॥ जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान। होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान।।घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार। शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार।। ॥ चौपाई ॥ जय जय श्री शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणधानी।।गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती। पूरन शरन चंद्रसा साजती।।विस्फोटक सी जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीड़ा।।मात शीतला तव शुभनामा। सबके काहे आवही कामा।। शोक हरी शंकरी भवानी। बाल प्राण रक्षी सुखदानी।।सूचि बार्जनी कलश कर राजै। मस्तक तेज सूर्य सम साजै।।चौसट योगिन संग दे दावै। पीड़ा ताल मृदंग बजावै।।नंदिनाथ भय रो चिकरावै। सहस शेष शिर पार…
॥ दोहा ॥॥ गणपति की कर वंदना, गुरू चरनन चितलाये।प्रेतराज जी का लिखूं, चालीसा हरषाय।जय जय भूताधिप प्रबल, हरण सकल दुःख भार।वीर शिरोमणि जयति, जय प्रेतराज सरकार ॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय प्रेतराज जग पावन, महाप्रबल त्रय तापनसावन।विकट वीर करुणा के सागर,भक्त कष्टहर सबगुण आगर। रतन जड़ित सिंहासन सोहे, देखत सुन नर मुनि मन मोहे।जगमग सिरपर मुकुट सुहावन, कानन कुंडल अति मनभावन। धनुष कृपाण बाण अरू भाला, वीरवेश अति भृकुटि कराला।गजारूढ़ संग सेना भारी, बाजत ढोल मृदंग जुझारी। छत्र चंवर पंखा सिर डोले,भक्त वृन्द मिल जय जय बोले।भक्त शिरोमणि वीर प्रचण्डा, दुष्ट दलन शोभित भुजदण्डा। चलत सैन काँपत भूतलह,…
॥ दोहा ॥ मात श्री महाकालिका ध्याऊँ शीश नवाय ।जान मोहि निजदास सब दीजै काज बनाय ॥ ॥ चौपाई ॥ नमो महा कालिका भवानी।महिमा अमित न जाय बखानी॥ तुम्हारो यश तिहुँ लोकन छायो।सुर नर मुनिन सबन गुण गायो॥ परी गाढ़ देवन पर जब जब।कियो सहाय मात तुम तब तब॥ महाकालिका घोर स्वरूपा।सोहत श्यामल बदन अनूपा॥ जिभ्या लाल दन्त विकराला।तीन नेत्र गल मुण्डन माला॥ चार भुज शिव शोभित आसन।खड्ग खप्पर कीन्हें सब धारण॥ रहें योगिनी चौसठ संगा।दैत्यन के मद कीन्हा भंगा॥ चण्ड मुण्ड को पटक पछारा।पल में रक्तबीज को मारा॥ दियो सहजन दैत्यन को मारी।मच्यो मध्य रण हाहाकारी॥ कीन्हो है फिर…
॥ चौपाई॥ जयति-जयति जय ललिते माता। तव गुण महिमा है विख्याता।।तू सुन्दरी, त्रिपुरेश्वरी देवी। सुर नर मुनि तेरे पद सेवी।। तू कल्याणी कष्ट निवारिणी। तू सुख दायिनी, विपदा हारिणी।।मोह विनाशिनी दैत्य नाशिनी। भक्त भाविनी ज्योति प्रकाशिनी।। आदि शक्ति श्री विद्या रूपा। चक्र स्वामिनी देह अनूपा।।हृदय निवासिनी-भक्त तारिणी। नाना कष्ट विपति दल हारिणी।। दश विद्या है रूप तुम्हारा। श्री चन्द्रेश्वरी नैमिष प्यारा।।धूमा, बगला, भैरवी, तारा। भुवनेश्वरी, कमला, विस्तारा।। षोडशी, छिन्न्मस्ता, मातंगी। ललितेशक्ति तुम्हारी संगी।।ललिते तुम हो ज्योतित भाला। भक्तजनों का काम संभाला।। भारी संकट जब-जब आए। उनसे तुमने भक्त बचाए।।जिसने कृपा तुम्हारी पाई। उसकी सब विधि से बन आई।। संकट दूर…
॥ दोहा ॥ मूर्ति स्वयंभू शारदा, मैहर आन विराज ।माला, पुस्तक, धारिणी, वीणा कर में साज ॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय जय शारदा महारानी, आदि शक्ति तुम जग कल्याणी।रूप चतुर्भुज तुम्हरो माता, तीन लोक महं तुम विख्याता॥ दो सहस्त्र वर्षहि अनुमाना, प्रगट भई शारदा जग जाना ।मैहर नगर विश्व विख्याता, जहाँ बैठी शारदा जग माता॥ त्रिकूट पर्वत शारदा वासा, मैहर नगरी परम प्रकाशा ।सर्द इन्दु सम बदन तुम्हारो, रूप चतुर्भुज अतिशय प्यारो॥ कोटि सुर्य सम तन द्युति पावन, राज हंस तुम्हरो शचि वाहन।कानन कुण्डल लोल सुहवहि, उर्मणी भाल अनूप दिखावहिं ॥ वीणा पुस्तक अभय धारिणी, जगत्मातु तुम जग विहारिणी।ब्रह्म…
॥ दोहा ॥ जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी।नमो नमो हरी प्रेयसी श्री वृंदा गुन खानी।।श्री हरी शीश बिरजिनी , देहु अमर वर अम्ब।जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब ।। ॥ चौपाई ॥ धन्य धन्य श्री तलसी माता । महिमा अगम सदा श्रुति गाता ।।हरी के प्राणहु से तुम प्यारी । हरीहीं हेतु कीन्हो ताप भारी।।जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो । तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ।।हे भगवंत कंत मम होहू । दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ।। सुनी लख्मी तुलसी की बानी । दीन्हो श्राप कध पर आनी ।।उस अयोग्य वर मांगन हारी । होहू विटप तुम…
|| दोहा || नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदंब।संत जनों के काज में, करती नहीं बिलंब॥ || चौपाई || जय जय जय विन्ध्याचल रानी। आदि शक्ति जगबिदित भवानी॥सिंह वाहिनी जय जगमाता। जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता॥ कष्ट निवारिनि जय जग देवी। जय जय संत असुर सुरसेवी॥महिमा अमित अपार तुम्हारी। सेष सहस मुख बरनत हारी॥ दीनन के दु:ख हरत भवानी। नहिं देख्यो तुम सम कोउ दानी॥सब कर मनसा पुरवत माता। महिमा अमित जगत विख्याता॥ जो जन ध्यान तुम्हारो लावे। सो तुरतहिं वांछित फल पावे॥तू ही वैस्नवी तू ही रुद्रानी। तू ही शारदा अरु ब्रह्मानी॥ रमा राधिका स्यामा काली। तू ही मात…
॥ दोहा ॥ जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि।गणपति जननी पार्वती अम्बे ! शक्ति ! भवानि॥ ॥ चौपाई ॥ ब्रह्मा भेद न तुम्हरे पावे, पंच बदन नित तुमको ध्यावे ।षड्मुख कहि न सकत यश तेरो, सहसबदन श्रम करत घनेरो ।। तेरो पार न पावत माता, स्थित रक्षा लय हित सजाता।अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, अति कमनीय नयन कजरारे ।। ललित लालट विलेपित केशर कुंकुंम अक्षत शोभा मनोहर।कनक बसन कञ्चुकि सजाये, कटी मेखला दिव्य लहराए ।। कंठ मदार हार की शोभा, जाहि देखि सहजहि मन लोभ।बालारुण अनंत छवि धारी, आभूषण की शोभा प्यारी ।। नाना रत्न जड़ित सिंहासन, तापर राजित हरी…